देश में सांप्रदायिक माहोल दिन व दिन बिगड़ता जा रहा है | कही पर हिन्दू मुस्लिम को मार रहा है तो कही मुस्लिम हिन्दू को और अगर नहीं भी मार रहा है तो मीडिया आपसी झगड़े को हिन्दू मुस्लिम का रूप देकर इसे सम्प्रदिक बना रही है | अब तक इन सब का नेता और मीडिया जमकर फायदा उठा रहे थे | वहीँ इसमें अब साहित्यकारों का नाम भी जुड़ गया है | जिन साहित्यकारों को देश की जनता भुला चुकी थी अब वो अपना पुरस्कार वापस करके एक बार फिर से प्रसिद्धि बटोर रहे हैं | दादरी की घटना के बाद बहुत से साहित्यकारों ने अपने पुरस्कार वापस कर दिए | क्युकि उनका मानना था की देश में ये सब गलत हो रहा है | लेकिन उनके दादरी की घटना पर अपने पुरस्कार लौटने पर बहुसंख्यक काफी नाराज़ से है | क्युकि उनका मानना है यदि साहित्यकारों को सही में देश में हुई ये घटना गलत लग रही है तो पहले हुई घटनाएँ क्यों गलत नहीं लगी ?
बहुसंख्यक समाज का सवाल है कि आखिर इस पर साहित्यकार राजनीती क्यों कर रहे है ? जो हुआ वो गलत था लेकिन ये पहली बार नहीं हुआ | इस तरह की बहुत सारी घटनाएँ इतिहास में दर्ज है जहाँ पर बहुसंख्यक समाज पर अल्पसंख्यक समाज की तरफ से भी ऐसी घटना हुई हैं | साहित्यकार जो की दल विशेष तथा धर्म विशेष की चाटुकारिता में देश द्वारा दिए गए सम्मान वापस कर रहे है उन्हें अब से पहले हुए दंगे क्यों नहीं दिखे?
आज के समय में उन सभी साहित्यकरों से सिर्फ ये सवाल है कि आपको यदि आपको अपना पुरस्कार लौटना ही था तो लिया क्यों ? क्युकि आपके सामने ही सिक्ख दंगे हुए, कश्मीर से पंडितों को मार कर भगाया गया, भागलपुर, गोधरा और ना जाने कितने और विस्फोट हुए | उसके लिए आपके मुह से कभी कोई शब्द नहीं निकले और ना ही तब पुरस्कार वापस किये | तो फिर अब दादरी की घटना से अचानक कैसे आपके अन्दर ये भावना जाग गयी ? या फिर उस समय सत्ता में वो थे जिनके लिए आप अपने साहित्य की रचना करते थे?
लोगों का फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से ये भी कहना है कि सिर्फ पुरस्कार ही क्यों? यदि आपको इतना बुरा लग रहा है तो पुरस्कार की पूरी धनराशी व्याज के साथ वापस कीजिए, यदि एकदम से यह देश इतना ही गलत लगने लगा तो अपनी नागरिकता, अपने अधिकार सब वापस कर दीजिये | नहीं तो ये गन्दी राजनीती बंद कर दीजिये जो देश में हिन्दू और मुस्लिम के बीच दूरी बढ़ा रही है |
आज के समय में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समझते हैं कि अब साहित्याकर जो कि दल विशेष के चटूकारें है, वो एक बार फिर से अपने मालिकों के लिए इस गन्दी राजनीती की आग में घी डाल रहें है | क्युकि उनके इस तरह से सिर्फ अपने पुरस्कार लौटाने से बहुसंख्यक समाज में एक नया आक्रोश पैदा होगा और वो देश के लिए घातक होगा |
ये आक्रोश पहले ही मीडिया अपने पिछले कई सालों से जगाने में लगी है| जोकि थोडा थोडा करके लोगों के अन्दर एक ज्वालमुखी सा भर रहा है | जिसकी बजह से इंसान, इंसान से दूर होता जा रहा है | और यदि आगे भी मीडिया, नेता और साहित्याकर ऐसे ही करेंगे तो ये ज्वालामुखी फट जायेगा जिससे सिर्फ और सिर्फ देश का नुकसान ही होगा| देश का नुकसान मतलब हिन्दू का नुकसान, मुस्लिम का नुकसान, सिक्ख का नुकसान और देश में रहने वाले हर आम नागरिक का नुकसान | तो पूरे देश की आपसे हाथ जोड़ कर बिनती है कि देश पहले से ही बहुत बंटा हुआ है इसको अब और न बांटों | हिन्दू और मुस्लिम को न लडवाओ और देश को थोडा विकास कर लेने दो |