क्यों करे सूर्य नमस्कार? आज की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में इंसान इतना वयस्त हो गया है, की उसके पास अब अपने लिए समय ही नहीं बचा है। अगर पहले समय के लोगो ओर अब के समय के लोगो की जीवन शैली को देखा जाये तो आज का इंसान इतना वयस्त हो गया है की उसको अपनी शारीरिक ओर मानसिक विकार के विषय में सोचने के लिए समय ही नहीं बचा है। जिस के कारण आज के समय में एक आम इंसान की औसतन आयु ६०-८० (लगभग) हो गयी है। ४०-५० की आयु तक आते आते उसको अनेक बीमारिया घेर लेती है। जिसका मुख्य कारण उसका अपने शारारिक ओर मानसिक तनाव को नजर अंदाज करना है। To read in English Click Here.
योग ऐसा ही एक उपयोगी और कारगर उपाय है, जिसको यदि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में उतार ले थो वो ९५% अपने को शारारिक ओर मानसिक विकारो से दूर रख सकता है।
सूर्य नमस्कार- इस कड़ी का सबसे कारगर योग है। अगर आप के पास बहुत कम समय है औरआप अपने शारीर को चुस्त, दुरस्त ओर शारारिक और मानसिक विकारो से दूर रखना चाहते है, तो आप के लिए सूर्य नमस्कार राम-बाण से कम नहीं है।
कम समय में शारीरिक और मानसिक तनावों से दूर होने के लिए प्रतिदिन- प्रातः कल-सूर्य नमस्कार आपके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी योग है।
सूर्य नमस्कार क्या है?
सूर्य नमस्कार उन लोगों के लिए पूर्ण योग है जो थोड़े समय में – सभी समय फिट रहना चाहते है। सूर्य नमस्कार एक मात्र ऐसा मंत्र है जो अपने आप में पूर्ण है।
सूर्य नमस्कार भारतीय सभ्यता का ही एक उद्धरण है। भारतीयों का मानना है कि भगवान सुर्य देव इस जगत के पालन करता है, वो हमारे शरीर की सभी जरुरतो के लिए आवश्यक पदार्थ के सर्जन कर्ता है। हमारे रोजमर्रा की भोजन, फलों, पानी और धरती सभी जगह भगवन सूर्य देव का वास है।
सूर्य नमस्कार भगवान सूर्य की ही बारह कलाओं को प्रदर्शित करता है। जो हमारे शारीर की सभी जरुरतो को परिपूर्ण करने के लिए पूर्ण योग है।
सूर्य नमस्कार बारह शक्तिशाली योग मुद्राओं का एक पूर्ण सेट है- जो हमारे शारीर के सभी अंगो को एक पूर्ण कसरत प्रदान करता है, ओर हमें शारीरिक ओर मानसिक शक्ति प्रदान करता है जो हमें रोगो से लड़ने में सहयता प्रदान करता है।
कैसे करे सूर्य नमस्कार?
सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह बारह शक्तिशाली योग मुद्राओं में किया जाता है, जो निम्नलिखित है;
(1) सूर्य नमस्कार प्रथम योग मुद्रा (प्रणामासन):

क्रिया करते समय इस मन्त्र का उच्चारण करे-ॐ मित्राय नमः
दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान ‘आज्ञा चक्र’ पर केंद्रित करके ‘सूर्य भगवान’ का आह्वान ‘ॐ मित्राय नमः’ मंत्र के द्वारा करें।
(2) सूर्य नमस्कार द्वतीय योग मुद्रा (हस्तोत्थानासन):

क्रिया करते समय इस मन्त्र का उच्चारण करे-ॐ रवये नमः
श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे ‘विशुद्धि चक्र’ पर केन्द्रित करें।
(3) सूर्य नमस्कार त्रित्ये योग मुद्रा (हस्तपादासन):

क्रिया करते समय इस मंत्र का उच्चारण करे-ॐ सूर्याय नमः
तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे ‘मणिपूरक चक्र’ पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
(4) सूर्य नमस्कार चतुर्थ योग मुद्रा (एकपाद प्रसारणासन):

क्रिया करते समय इस मंत्र का उच्चारण करे-ॐ भानवे नमः
इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को ‘स्वाधिष्ठान’ अथवा ‘विशुद्धि चक्र’ पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।
(5) सूर्य नमस्कार पंचम योग मुद्रा (दण्डासन):

क्रिया करते समय इस मंत्र का उच्चारण करे-ॐ खगाय नमः
श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान ‘सहस्रार चक्र’ पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
(6) सूर्य नमस्कार छठ योग मुद्रा (अष्टाङ्ग नमस्कार आसन):

क्रिया करते समय इस मंत्र का उच्चारण करे-ॐ पूष्णे नमः
श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को ‘अनाहत चक्र’ पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें। सूर्यनमस्कार व श्वासोच्छवास
(7) सूर्य नमस्कार सप्तम योग मुद्रा (भुजङ्गासन):

क्रिया करते समय इस मंत्र का उच्चारण करे-ॐ हिरण्य गर्भाय नमः
इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
(8) सूर्य नमस्कार अष्ठम योग मुद्रा (अधोमुक्त श्वानासन):

क्रिया करते समय इस मंत्र का उच्चारण करे-ॐ मरीचये नमः
श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान ‘सहस्रार चक्र’ पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
(9) सूर्य नमस्कार नवम योग मुद्रा (अश्व संचालनासन):

क्रिया करते समय इस मंत्र का उच्चारण करे-ॐ आदित्याय नमः
इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को ‘स्वाधिष्ठान’ अथवा ‘विशुद्धि चक्र’ पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।
(10) सूर्य नमस्कार दसम योग मुद्रा (उत्थानासन):

क्रिया करते समय इस मंत्र का उच्चारण करे-ॐ सवित्रे नमः
तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे ‘मणिपूरक चक्र’ पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
(11) सूर्य नमस्कार ग्यारवी योग मुद्रा (हस्तोत्थानासन):

क्रिया करते समय इस मंत्र का उच्चारण करे-ॐ अर्काय नमः
श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे ‘विशुद्धि चक्र’ पर केन्द्रित करें।
(12) सूर्य नमस्कार बारवी योग मुद्रा (प्रणामासन):

क्रिया करते समय इस मंत्र का उच्चारण करे-ॐ भास्कराय नमः
यह स्थिति – पहली स्थिति की भाँति रहेगी। सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियाँ हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं।

यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें जान आ जाती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है।